आशय स्पष्ट कीजिए-

() जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहें हैं।


() प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों हों।


() उत्पाद का उत्पादन हमारे सुविधा के लिए हुआ था। अब उत्पाद धीरेधीरे हम पर हावी होते जा रहे हैं। इससे हमारा चरित्र बदल रहा है। मानव संसाधनों के उपभोग को ही चरम सुख मान बैठे हैं। मानसिकता के बदलाव के चलते दिखावा भी बढ़ गया है। छोटेछोटे कामों के लिए भी भारी-भरकम एवं महंगे उत्पादों पर निर्भर रहने लगे हैं।

() उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाववश हम अंधानुकरण में कई ऐसी चीज़े अपना लेते हैं, जो अत्यंत हस्यास्पद हैं। जैसे- अमेरिका में लोग मृत्यु के बाद अंतिम क्रियाओं का प्रबंध कर लेते हैं। वे ज्य़ादा धन देकर हरी घास तथा संगीतमय फव्वारे की चाहत प्रकट कर देते हैं। भारतीय संस्कृति में ऐसे अंधानुकरण की हँसी उड़ना ही है। भारत में भी लोग इसी प्रकार के ढकोसलों जो कि पश्चिमीकरण से प्रभावित हैं के प्रभाव में रहे हैं साथ ही भारतीय समाज में पहले से अनेक हास्यास्पद प्रथाएँ हैं जो पहले से ही व्याप्त हैं|


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